Saturday 23 July 2022

बचपन के परिंदो के सपनों के घरोंदे

 




बचपन के परिंदो के सपनों के घरोंदे  


बात उन दिनों की है जब चेतना और चतुर सावन में बरसे पानी से बने रेट की टीलो पर अपने घरोंदे बनाया करते थे।घरोंदे बचपन के खेलो में से सब से लोकप्रिय खेल हुआ करता था। ये रेत से बनी ऐसी सरंचनाये है जो सावन की रिमज़िम फुहार से सिजती पानी की बूँद जब रेत से सरोकार करती और बंध जाती ।   गिली हुई रेत  से विभिन्न आकार के घरोंदे बनाकर  उसे सुंदर सजाकर रूपांतरण करना  खेल हुआ करता था । यह खेल ग्रामीण जीवन शैली की पहली प्रक्रिया है जो सामाजिक जीवन से सरोकार कराती। चेतना  घरोंदे बनाती, गिली  माटी से उन्हे रूपरेंखाकित  करती । नीम की पतली  टहनिया और बॉस  की सिलियो से बने दरवाज़े और खिड़कियो से घरोंदा  पूर्ण रूप से तैयार हो जाता। फ़िर तेज़ धूप खिलती, माटी पानी छोड़ती तो घरोंदा धस कर फिर से टिले में परिवर्तित हो जाता। घरोंदे बनते बिगड़ते और इनके साथ जूडी  चंचल भावनाओं को शब्दों से अर्थ देना मेरे बस  का नहीं है।
चेतना    घरोंदे की प्रारंभिक सरंचना से लेकर उसके  आखिरी समरेखण में कौशल थी तो वही चतुर विविध  बने घरोंदो में सबसे अच्छे घरोंदे को परख कर अपने नाम लेने में। आंगन मे बने घरोंदों मे सबसे सुंदर बना घरोंदा चतुर अपनी मां को जा परोसता था।  अपने लाड की यह प्रतिभा देख  मां बहुत खुश हो जाती तो चतुर की खुशी की ठहाके आंगन में गूंज उठते । वन्ही दूर खडी  चेतना मन ही मन प्रसन्न हो जाया करती । 
चतुर अपनी बूझीं पर अतिआत्मविश्‍वासी  था, उससे स्‍पर्धा करना  और जितना अच्‍छा लगता तो वन्‍ही चेतना को निर्पेक्ष खेलना और मजे लूटना। चेतना के लिए वह जीत किसी हार से कम नहीं है जो किसी को आहत करे। प्राथमिक विद्यालय में खेले खेलो में वह कभी किसी भी खेल में अवल नहीं रही। ना हीं शिक्षा को उसने  कभी एक स्पर्धा  के रूप में देखा। उसके लिए शिक्षा का अर्थ जनजीवन , प्रकृति और उसमें पल रहे  सुक्ष्म जीवों से लेकर multicellular जीवों  तक के अध्ययन तक सिमित था। थोड़ा  और विवरन करें तो दुनिया की संरचना , तारों-सितारों के बिच की दुनिया और उसमें दादी की कहीं हुई कहानियां ढूढना । वहीं  चतुर शिक्षा को एक औज़ार मान उससे समाज के सामने परोसकर अपनी योग्यता शाबित  करना समजता  था। sinΘ- cosΘ  से जुड़े जटिल  सवालों का हल निकालने  में वो निपुरण था। किंतु रोजाना की जिंदगी में  उपयोग होने वाले 4 बाय 4 गज को महसूस करने की तीव्रता उसमें कम दिखाई पड़ती ।
चतुर की माने तो इस युग में  बुद्धि विकास निरंतर कुछ इस तरह होना चाहिए जिससे आप अपने जीवन में आने वाली हर स्पर्धा के योग्य हो, लोगो से सर्वोपरि हो। वो सफलता -असफलता , हार-जीत के बीच पड़ा एैसा सुक्ष्म हो गया की प्राकृतिक जीवन शेली जीना ही भूल गया। वहीं  चेतना अपने विवेक और उधम  व्यवहार से लोगो से लेकर जानवरों तक प्रकृति में ऐसी सिमट्टी हुई थी जंहा उसे ऐसे व्यक्तित्व का आभास होता जो ना तो श्रेष्ठ है ना ही निरकृषटम , वो तो इतना सामान्य है की अधिक बुद्धि वाले देख ही नहीं पाते ।
आज चतुर व्‍यवशाय जगत में अपना वर्चस्व बना रहा है। वह हर शण इतना अपेक्षित हो गया है कि मानशिक रूप से अस्थिरता  ने कुछ इस तरह जखड  रखा है की पल भर में वो खुश हो जाता और पल भर में दुखी।जब हाल ही में मेरी मुलाकात ऐसे व्यक्तितव से हुई जहॉ अभिमान और ईर्षा के अलावा उसमें कुछ और नहीं देखा पाया। चेतना मेरी एक प्रेरणा है , हो सकता  है अपनी सरलता, सहजता, मासूमियत के कारण  उसे  कुछ भी हॉसिल  न हुआ हो , ना तो प्रेम ना ऐसा प्रयाग जिसकी  उसने कभी कल्पना की हो। उसका कोई कोटिल्य जीवन नहीं है। वो तो प्राकृतिक है जहाँ  कुछ किसी के साथ  अच्छा होने पर ठहाके मार कर हंस लिया करती है और कुछ बुरा होने पर ऐसे विलाप करना जेसे खुदने कुछ खोया हो, ऐसी संवेदन शिलता सहजा,  आज भी उसमें ऐसी जिवीत हैं जेसी घरोंदे बनाते समय हुआ करती थी। चेतना और उसके रेत के टिलो पर बने घरोंदे  ऐसे मन मानस का प्रतीक है जिसकी अपेक्षा में देव सदेव स्वयं से करता  आया हूं। 


Saturday 14 May 2022

Bhopal -City of lakes

 

Accommodating people of different culture ,language ,views, geography ,food  are the best ways of practicing humanitarian wisdom ,intelligence and cardinal values



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बचपन के परिंदो के सपनों के घरोंदे

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